आयुर्विज्ञान को प्राणो को बचाने का विशेष ज्ञान भी कहा जाता है इसे आयुर्वेद के नाम से भी जानते है आयुर्वेद यानि कि प्राणो का वेद इस रूप में भी देखते है हमारे ऋषि मुनियो ने आचार्यो ने पर्यटन कर ऐसी जड़ी बूटियों को खोज निकाला था जो 64 दिव्य जड़ी बूटी,वनस्पति है जिनके माध्यम से लगभग सभी बीमारियो को ठीक किया जा सकता है आयुर्वेदिक चिकित्सा के द्वारा रोग को पूर्णता के साथ समाप्त करने की क्षमता है आयुर्वेद के ग्रंथो में 64 दिव्य औषधियों का वर्णन मिलता है
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शनिवार, 5 मार्च 2016
तेलियाकंद
तेलियाकंद
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तेलियाकन्द 64 दिव्य जड़ी बूटियों में से एक औषधि है जिसके माध्यम से अनेक प्रकार की दवाई बनाई जाती है यह केंसर जैसे भयानक रोग की एक सफल औषधि है इसके माध्यम से मनुष्य शरीर को लोहे के सामान
मजबूत बनाया जा सकता है और अगर पंद्रह दिनों तक गाय के दूध में मात्र कुछ बूड़े डालकर योग्य बैध्य के निर्देशन में लिया जाये तो पूरे एक वर्ष तक व्यक्ति को कोई रोग नहीं हो सकता इसके अलावा पारद में इसके
रस को मिलकर मर्दन किया जाय तो परा बांध जाता है और बंधी हुई अवस्था में गोली का आकार देकर गोली को मुह में रख लिया जाय तो मनेच्छानुसार कही भी वायु बेग से एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकता
है और वापिस आ सकता है और जैसे ही गोली मुह से निकली जाती है वह व्यक्ति जमीं पर आकर उतर जाता है आज के युग में यह सब विश्वास करने लायक नहीं लगता मगर यह बिलकुल सत्य है हमारे यहाँ हिमालय
में रहने वाले योगी यति ,सन्यासी आज भी इस प्रयोग के माध्यम से जंगलो में इसी प्रकार वायु गमन करते है और उच्च कोटि की साधनाए करके अपने जीवन को बहुत उचाई पर उठाकर तपस्यारत रहते है इसी
कन्द रस के द्वारा सर्प विष भी दूर किया जा सकता है और किसी भी जानवर के विष को दूर किया जा सकता है यह संसार की दिव्य औषधि इसीलिए कही जाती है क्योकि कोई भी रोग हो इसके द्वारा दूर किया जा
सकता है स्वास के रोगों में और हाथ पैरो के दर्द में यह औषधि महत्वपूर्ण मानी गयी है इसके चूर्ण के द्वारा स्वास रोग बिलकुल ठीक हो जाते है मगर इसे किसी योग्य बैध्यके सानिध्य में ही औषधि प्रयोग करना चाहिए
क्योकि यह बहुत ही विषेला पदार्थ है जरा भी ज्यादा मात्रा में प्रयोग करने से मृत्यु भी हो सकती है इसलिए योग्य बैध्य की सलाह से उचित मात्रा जरूरी है तेलियाकंद का पौधा लगभग तीन से चार फीट तक का होता है
इसके पत्ते मूली के पत्तो जैसे होते है जिनसे निरंतर तेल झरता रहता है इसलिए पौधे के चारो ओर तेल फैला हुआ रहता है इसके कन्द के नीचे दो से तीन चार तक काले नाग सर्प रहते है जिनका विष आम काले नाग से
कई गुना जहरीला होता है इसलिए इस पौधे को उखाड़ने की हिम्मत हर कोई नहीं कर सकता वैसे भी यह बहुत कम देखने को मिलता है जिन्हें हिमालय के चप्पे चप्पे का ज्ञान है उन्हें ही इस पौधे के बारे में पता होता है
ज्यादातर विन्ध्याचल के पहाड़ो में घने वृक्षों के बीच यह पौधा प्राप्त होता है या नर्मदा के किनारे यह पौधा प्राप्त होता है या कभी कभी पहाड़ो पर भी यह प्राप्त हो जाता है इसे प्राप्त करना अत्यंत दुष्कर कार्य है वस्तुतः इसके
माध्यम से अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न किये जा सकते है जो मानव के लिए मुश्किल ही नहीं असंभव जैसे प्रतीत होते है इसमें कोई संशय नहीं है सच कहू तो प्रकृति का मानव जाति को अमरता का वरदान है इसके
द्वारा हजारो सालो तक जीवित रहा जा सकता है इसका रस ताम्र को पिघलाकर डालने पर तुरंत ताम्बा स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता है और भी बहुत सारे लाभ है जिन्हें लिखना संभव नहीं है क्योकि इससे अनंत प्रयोग
संपन्न किये जा सकते है यह एक प्रयोग का भी विषय है |