Welcome to The Natural Plants!
Untitled design - 2022-11-30T174335.028

My Cart0

0.00
There are 0 item(s) in your cart
Subtotal: 0.00

जटामांसी Jatamansi

जटामांसी

 

लैटिन नाम : नार्डोस्टकिस जटामांसी डी.सी. (Nardostachys jatamansi D.C.)

 

Family: Valerianaceae.

 

हिन्दी : जटामांसी, बालछड़।

 

गुजराती, मराठी: जटामांसी।

 

परिचय

 

यह हिमालय प्रदेश के १० हजार से १७ हजार फीट की ऊँचाई तक तथा भूटान में पायी जाती है। इसका क्षुप बहुर्षायु होता है। इसकी जड़ कठिन तथा अनेक शाखाओं से युक्त होती है तथा ये ६-७ अंगुल तक लम्बे सघन रोमों से आवृत्त रहती है। जो जटा रूप धारण कर लेती हैं। जटा के अंतिम भाग पर दो से सात-आठ की संख्या में पत्र होते हैं जो ६ से ७ इंच तक लम्बे होते हैं, मध्य में १ इंच मोटा होता है। जड़ की ओर अत्यन्त संकुचित होती है। काण्डपत्र १ से ४ इंच तक लम्बे होते हैं। डण्डियों के अंत में सफेद या कुछ गुलाबी रंग के छोटे-छोटे फूलों के गुच्छे लगते हैं। फल छोटे, गोल, सफेद एवं रोयेंदार होते हैं। इसका भौमिक तना तथा मूल जो कि रोमों से आवृत्त होता है एवं शुष्क होने पर गहरे धूसर रंग के या रक्ताभ भूरे रंग के हो जाते हैं और ये विशिष्ट सुगन्ध वाले होते हैं। इनका उपयोग तेलों को सुगंधित बनाने व रंगने के भी काम में लेते हैं।

 

रासायनिक संगठन

 

इसमें मुख्य रूप से हरिताभ हल्के पीले रंग के जल से भी हल्का तथा हवा लगने पर जम जाने वाला, कर्पूर के समान गंध वाला, कड़वा तथा तीता तेल होता है। इस तेल में ईस्टर, अल्कोहल, सेस्कीटर्पेन हाइड्रोकार्बन होता है। इसके अतिरिक्त जल में अविलेय रवादार रूप में अम्लीय द्रव्य तथा राल भी होता है।

 

गुण : लघु, तीक्ष्ण, स्निग्ध।

 

वीर्य : शीत।

 

रस : तिक्त, कषाय, मधुर।

 

विपाक : कटु

6-Month (White Palash plants) 1feet

प्रभाव : मानस दोष शामक ।

प्रयोग

मस्तिष्क तथा नाड़ी तन्तुओं के विकारों को नष्ट करने के लिये। शिरःशूल में, अपतन्त्रक में, मानसिक आघात पहुँचने पर, हत्कम्प, अपस्मार तथा किसी प्रकार के आक्षेप होने पर जटामांसी का फाण्ट देने से लाभ होता है। आध्मान, उदरशूल तथा आमाश्यगत् शूल में जटामांसी ४ ग्राम, दालचीनी १ ग्राम, शीतल चीनी १ ग्राम, सौंफ १ ग्राम, सोंठ १ ग्राम, मिश्री ८ ग्राम सभी का चूर्णकर रख ले और ३ से ९ ग्राम की मात्रा में देवे तो लाभ होता है। सन्निपात ज्वर व विषम ज्वर में भी यह उपयोगी है। स्त्रियों के आर्तव पीड़ा में देने से रोग दूर होकर आर्तव स्राव ठीक होने लगता है। पीड़ा एवं दाह युक्त विस्फोट एवं व्रणों पर लेप, झांई आदि त्वचा रोग पर उबटन रूप में व्यवहार करते हैं। अधिक पसीना आने पर इसके चूर्ण को टेल्कम पावडर की तरह लगाते है।

प्रयोज्य अंग

मूल।

मात्रा

५०० से १००० मि. ग्राम।

विशिष्ट योग

मांस्यादि क्वाथ, रक्षोघ्न घृत, सर्वोषधि स्नान।

                      जटामांसी

जटामांसी भूतजटा जटिला च तपस्विनी।

मांसी तिक्ता कषाया च मेध्या कान्ति बलप्रदा ॥ स्वाद्वी हिमा त्रिदोषासदाहवीसर्प कुष्ठनुत् ॥ भा० प्र० ॥

 

 

Sonu Vaatya

Medicinal Plants And Seeds Expert

Related Posts

Call Us

x