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Typhonium venosum (तेलिया कन्द) Teliya kand

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नपुंसकता और कैंसर जैसे रोगों में रामबाण है ‘तेलियाकंद’

रत के गौरव्मान इतिहास को कोन नहीं जानता,यह तो विश्व व्यापी है की भारत एक ऋषि मुनियों का देश रहा है और सभी क्षेत्रों जैसे विज्ञानं गणित आयुर्वेद में बहुत पहले से सभी दुसरे देशों से आगे है| भारत में प्राचीन काल में ऐसे बहुत सी खोज हो चुकी थी जो की बाकी देशों ने कई सदियों बाद की| भारत शुरू से ही सोने की चिड़िया कहलाता रहा है जिसे न जाने कितने देश सदियों तक लूटते रहे लेकिन फिर भी इसका खजाना खाली ना कर पाए|
भारत के सोने की चिड़िया होने और यहाँ पर सोना बनाये जाने के बारे में हो सकता है कुछ जोड़ हो|
भारत देश में सेंकडों ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी आखों के सामने जड़ी बूटियों से पारा, ताम्बा, जस्ता, तथा चांदी से सोना बनते देखा है तथा आज भी देश में हजारों लोग इस रसायन क्रिया में लगे हुए हैं| | पूर्व में बूंदी के राजा हाडा प्रतिदिन क्विन्त्लों में का दान किया करते थे जो की मान्यताओं के अनुसार बुन्टियों के माध्यम से ही तैयार की जाती थी| इस पूरी प्रक्रिया में लोग पारे को ठोस रूप में बदलने की कोशिश करते हैं तथा गंधक के तेल से पारे का एक एलेक्ट्रोन कम हो जाता है तथा वो गंधक पारे को पीला रंग दे देता है|
2Hg+ S = Hg2S (-2e ) ( सोना)
सोने के निर्माण में तेलिया कंद जड़ी बूटी का बहुत बड़ा योगदान है
तेलिया कंद एक चमत्कारिक पोधा है| जिसका सबसे पहला गुण परिपक्वता की स्थिति में जेहरीले से जेहरिले सांप से काटे हुए इंसान का जीवन बचा सकता है|
दूसरा ये पारे को सोने में बदल सकता है|
तेलिया कंद का पोधा 12 वर्ष उपरांत अपने गुण दिखता है| तेलिया कंद male और female 2 प्रकार का होता है|
इसके चमत्कारी गुण सिर्फ male में ही होते है| इसके male कंद में सुई चुभोने पर इसके तेजाबी असर से
वो गलकर निचे गिर जाती है| पहचान स्वरुप जबकि female जड़ी बूटी में ऐसा नहीं होता|
इसका कंद शलजम जैसा रंग आकृति लिए हुए होता है तथा पोधा सर्पगंधा से मिलती जुलती पत्ती जैसा
होता है| इसका पोधा वर्षा ऋतू में फूटता है और वर्षा ऋतू ख़तम होने के बाद ख़तम हो जाता है|
जबकि इसका कंद जमीन में ही सुरक्षित रह जाता है| इस तरह से लगातार हर मौसम में ऐसा ही होता है|
और ऐसा 12 वर्षों में लगातार होने के बाद इसमें चमत्कारिक गुण आते हैं| इसके पोधे के आसपास की जमीन का क्षेत्र
तेलिय हो जाता है तथा उस क्षेत्र में आने वाले छोटे मोटे कीड़े मकोड़े उसके तेलिये असर से मर जाते हैं|
चूका है तथा उसके बच्चे इसकी अधिक जानकारी नहीं रखते|
एक महात्मा के बताने के अनुसार तेलिया कन्द लोहे को गला सकता है । एक लोहे के सरिये को लेकर जो उसे कंद के अन्दर डालकर थोड़े समय पश्चात बाहर निकालकर उसे मोड़ने पर वह आसानी से मुड़ जायेगा और कोई इसे जोगिया कन्द भी कहते है । लोग कहते है कि केन्सर के लिए यह कन्द अत्यन्त उपयोगी है । एक महात्मा के अनुसार हिमालय में साधु – महात्मा अपने शरीर की ठंड से रक्षा हेतु तेलिया कंद को चिलम में भर कर पीते है । इसके अतिरिक्त एक महात्मा ने तेलिया कन्द के द्वारा पारा एवं तांबे में से सोना (सुवर्ण) बनाया था । इसके अनेक उदाहरण हमें पढ़ने हेतु मिलते है । कई राज्यों में अनेक वनस्पतियों के मूल को लोग तेलिया कन्द नाम से जानते है । तो इस स्थिति में यहा निर्णय करना कठिन है कि वास्तविक तेलिया कंद कौन है । तो इस अनुसन्धान में यथोचित प्रयास किया है । प्राप्ति स्थानः- इसके प्राप्ति स्थान के विषय में किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है इसके नाम और गुणधर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है । जैसे कि राजनिघण्टु में तेलिया कन्द का उल्लेख प्राप्त होता है- अर्शारि पत्र संकाशं तिल बिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्थ भूमिस्थ तिल कन्दोति विस्तृत। इसी प्रकार का उल्लेख रसेन्द्र चूड़ामणी में भी दृष्टिगत होता है-तिलकन्देति
 रशशास्त्र के एक ग्रन्थ सुवर्ण तंत्र (परमेश्वर परशुराम संवाद) नाम के एक ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त होता है कि, एक कमल कन्द जैसा कन्द होता है पानी में उत्पन्न होता है और जहाँ पर यह कन्द होता है उसमें से तेल स्रवित होकर निकटवर्ती दस फिट के घेरे में पानी के ऊपर फैला रहता है और उस कन्द के आस-पास भयंकर सर्प रहते है । इसके अतिरिक्त सामलसा गौर द्वारा लिखित जंगल की जंडी बूटी में भी पृष्ठ संख्या २२३ में भी इस कन्द का उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। तेलिया कन्द के विषय में कहा जाता है कि यह कन्द विन्ध्याचल, आबु, गिरनार, अमरनाथ, नर्मदा नदी के किनारे, हिमालय, काश्मीर आदि स्थानों में प्राप्त होता है । मध्यभारत में छतींसगढ़, रांगाखार, भोपालपय्नम के पहाड़ों में तेलिया कन्द होतां है । गुजरात में यह टॉप फार्मा मिल जाता है. उसके नाम से असके मूल बजार में बेचे जाते है । वहाँ के वृद्धों का ऐसा मत है कि जो तेलिया कन्द के रस में तांबा को गलाकर डालने पर वह(ताँबा) सोना बन जाता है । और यदि कोई व्यक्ति इस रस का सेवन करता है तो उसे बुढापा जन्दी नहीं आता है । पूज्य श्रीमालीजी ने भी इस बात का उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है । भारतवर्ष के वे ऋषि-गण धन्य है जिन्हों ने देश को ऐसा दिव्य ज्ञान देकर देश को सोने की चिड़ियाँ की उपमा दिलाई है ।
तेलीया कंद के उपयोगः- तेलीया कंद जहरी औषधि है उसका उपयोग सावधानी पुर्वक करना, संघिवा, फोडा, जख्म दाद, भयंकर, चर्मरोग, रतवा, कंठमाल, पीडा शामक गर्भनिरोधक गर्भस्थापक शुक्रोत्पादक, शुक्रस्थंभक, धनुर अपस्मार, सर्पविष, जलोदर कफ, क्षय, श्वास खासी, किसी भी प्रकार का के´शर, पेटशुल आचकी, अस्थिभंग मसा, किल, कृमी तेलीया कंद इन तमाम बीमारीयो मे रामबाण जैसा कार्य करता है, और उसका अर्क जंतुध्न केल्शीयम कि खामी, स्वाद कडवा, स्वेदध्न सोथहर और स्फुर्ति दायक हैं तेलीया कंद को कोयले मे जला के उसकी राख को द्याव, चर्मरोग, किल वगेरे बिमारीओ मे काम करता है । अन्न नली कि सुजन मे इसके बीज को निमक के साथ मिलाकर सेवन करना, इके फूल पीले सफेद ओर खुशबु दार होते है ।
सावधानीयाः- तेलीया कंद एक जहरी-औषधी है इस लीये उसका उपयोग सावधानी पूर्वक करना, तेलीया कंद के भीतर तीन प्रकार के जहरी रसायन होते है …. जो ज्यादा मात्रा मे लेने से गले मे सुजन आना, चककर, किडनी का फेल होना या ज्यादा मात्रा मे लेने से मृत्यु तक हो सकती है इसलिए इसका पुराने कंद का हि उपयोग करना यातो कंद को रातभर पानी मे भीगोने से या पानी मे नमक डाल के ऊबालने से उसका जहर निकल जाता है ।
तेलीया कंद से काया कल्पः- गाय के दुध मे तेलीया कंद के चुर्ण को पंदरा दिन तक सेवन करने से व्यक्ति का काया कल्प हो जाता है । चूर्ण को दुध मे मिलाकर सेवन करना ।
तेलीया कंद से सुवर्ण निर्माणः- तेलीया कंद के रसको हरताल मे मिलाकर इकीस दिन तक द्युटाई करने पर हरताल निद्युम हो जाती है । वो आग मे डालने पर धुआ नहि देती । कहते है फिर वो हरताल ताम्र या चाँदि को गलाकर ऊसमे डालने पर वो सोना बन जाता है, पारें को तेलीया कंद के रस मे घोटने से वो बध्ध हो जाता हैं और ताम्र और चाँदि का वेद्य करता है ।
तेलीया कंद के द्वारा पारद भस्म निर्माणः- कंद को अच्छी तरह से घोट के ऊसकि लुब्दी बनाओ और ऊसी के रसमे द्योटा हुआ पारा ऊस लुब्दी के बीच मे रख शराब संपुट कर पुट देने से भस्म हो जाती है । तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंधः- ऊसके पुष्प का आकार सर्प जेसा होता है । संस्कृत नाम सर्पपुष्पी और सर्पिणी है । इसको सर्प कंद भी कहते है । तेलीया कंद का कंद सर्प विष निवारक है । ऊस कंद के निचे सर्प रहता हैं । क्युकी ऊस कंद मे बकरी के मखन जेसी गंद्य वाला रसायन कि वजह सर्प ऊसके तरफ आकर्षित रहते है । तेलीया कंद के कांड मे सर्प के शरीर जैसा निशान होता है । जैसे कोब्रा सर्प का शरीर तेल जैसा चमकता है वैसा यह पोद्या भी तेली होता है । इस प्रकार तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंध है । किसी किसी जगह पर कंद को ऊखाडने मे सर्प अडचन भी खडी करते हैं ।
तेलीया कंद की जातीः- तेलीया कंद एकलींगी औषधि है । उसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग-अलग होते है और एक काला तेलीया कंद भी होता है । तेलीया कंद की अनेक प्रजातिया होती हैं । ऊसमे यहा दर्शाई गई प्रख्यात है ।
तेलीया कंद का परिक्षणः- एक लोहे कि किल लेकर उस कंद के भीतर गाडदो दुसरे दिन वो किल पर अगर जंग लग जाता है तो वो सही तेलीया कंद दुसरा परिक्षण यह है कि अगर कपुर को इस कंद के ऊपर रखने पर वो गल जाता है । तेलीया कंद के नाम का विश्लेषणः- लोह द्रावक के दो अर्थ निकलते है इसके कंद का रस धातु को गला देता है । दुसरा अर्थ है अष्ट लोह मेसे किसी भी धातु को गलाते समय ऊसमें इस कंद कि मात्रा डालने पर ऊसको वो द्रवित कर देता है वो है लोहद्रावक । दुसरा करविरकंद, तेलीया कंद की एक जाती के पत्र कनेर जेसे होते हैं इसलिए इसको करविरकंद कहते है, पत्र और कांड पर रहे तिल जैसे निशान कि वजह से इसको तिलचित्रपत्रक भी कहते है । तेल जेसा द्रव स्त्रवित करता हैं इसलीए तैलकन्द इसका कंद जहरी होने से ऊसको विषकंद भी कहते है और देहसिद्धि और लोहसिद्धि प्रदाता होने की वजह से सिद्धिकंद और विशाल कंद होने की वजह से इसको कंदसंज्ञ भी कहते है ।
प्रमुख वनस्पति प्रयोग- तेलिया गन्ध यह एक पौधा है, यह तीन फिट तक (१ यार्ड, १ गज) ऊँचा होता है । इसकी जड़ गाजर जैसे गोल एवं लम्बी होती है । यदि परिपुष्ट (सुविकशित) पौधे को उखाड़ कर तोला जाय तो उसका वजन लगभग ५ सेर होगा (१ पक्व सेर-८० तोला) यह पौधा जहाँ उगता है उसके आसपास धास आदि कुछ भी नही पैदा होता है । इस पौधे के नीचे वाली भूमि कृष्ण वर्ण, अत्यन्त चिकनी और मजबूत होती है । उस पौधे की नीचली भूमि पर देखने से तेल गिराया गया हो ऐसा दृष्टिगोचर होता है । उसके पत्ते आम के पत्ते जैसे किन्तु थोड़े छोटे होते है । यह पौधा नदी के किनारे, तालाब के किनारे होता है । इसकी सूखी हुई लकड़ी से पारद का मर्दन करने से उसका बन्धन हो जाता है । इस पौधे को लोहे के सरिये से खोदने से सरिया टूट जाता है । इसलिए इसको हिरण के सींग से खोदना चाहिए । इसके फल पीले रंग के होते है ।
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आयुर्विज्ञान को प्राणो को बचाने का विशेष ज्ञान भी कहा जाता है इसे आयुर्वेद के नाम से भी जानते है आयुर्वेद यानि कि प्राणो का वेद इस रूप में भी देखते है हमारे ऋषि मुनियो ने आचार्यो ने पर्यटन कर ऐसी जड़ी बूटियों को खोज निकाला था जो 64 दिव्य जड़ी बूटी,वनस्पति है जिनके माध्यम से लगभग सभी बीमारियो को ठीक किया जा सकता है आयुर्वेदिक चिकित्सा के द्वारा रोग को पूर्णता के साथ समाप्त करने की क्षमता है आयुर्वेद के ग्रंथो में 64 दिव्य औषधियों का वर्णन मिलता है



शनिवार, 5 मार्च 2016
तेलियाकंद

तेलियाकंद
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तेलियाकन्द 64 दिव्य जड़ी बूटियों में से एक औषधि है जिसके माध्यम से अनेक प्रकार की दवाई बनाई जाती है यह केंसर जैसे भयानक रोग की एक सफल औषधि है इसके माध्यम से मनुष्य शरीर को लोहे के सामान

मजबूत बनाया जा सकता है और अगर पंद्रह दिनों तक गाय के दूध में मात्र कुछ बूड़े डालकर योग्य बैध्य के निर्देशन में लिया जाये तो पूरे एक वर्ष तक व्यक्ति को कोई रोग नहीं हो सकता इसके अलावा पारद में इसके

रस को मिलकर मर्दन किया जाय तो परा बांध जाता है और बंधी हुई अवस्था में गोली का आकार देकर गोली को मुह में रख लिया जाय तो मनेच्छानुसार कही भी वायु बेग से एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकता

है और वापिस आ सकता है और जैसे ही गोली मुह से निकली जाती है वह व्यक्ति जमीं पर आकर उतर जाता है आज के युग में यह सब विश्वास करने लायक नहीं लगता मगर यह बिलकुल सत्य है हमारे यहाँ हिमालय

में रहने वाले योगी यति ,सन्यासी आज भी इस प्रयोग के माध्यम से जंगलो में इसी प्रकार वायु गमन करते है और उच्च कोटि की साधनाए करके अपने जीवन को बहुत उचाई पर उठाकर तपस्यारत रहते है इसी

कन्द रस के द्वारा सर्प विष भी दूर किया जा सकता है और किसी भी जानवर के विष को दूर किया जा सकता है यह संसार की दिव्य औषधि इसीलिए कही जाती है क्योकि कोई भी रोग हो इसके द्वारा दूर किया जा

सकता है स्वास के रोगों में और हाथ पैरो के दर्द में यह औषधि महत्वपूर्ण मानी गयी है इसके चूर्ण के द्वारा स्वास रोग बिलकुल ठीक हो जाते है मगर इसे किसी योग्य बैध्यके सानिध्य में ही औषधि प्रयोग करना चाहिए

क्योकि यह बहुत ही विषेला पदार्थ है जरा भी ज्यादा मात्रा में प्रयोग करने से मृत्यु भी हो सकती है इसलिए योग्य बैध्य की सलाह से उचित मात्रा जरूरी है तेलियाकंद का पौधा लगभग तीन से चार फीट तक का होता है

इसके पत्ते मूली के पत्तो जैसे होते है जिनसे निरंतर तेल झरता रहता है इसलिए पौधे के चारो ओर तेल फैला हुआ रहता है इसके कन्द के नीचे दो से तीन चार तक काले नाग सर्प रहते है जिनका विष आम काले नाग से

कई गुना जहरीला होता है इसलिए इस पौधे को उखाड़ने की हिम्मत हर कोई नहीं कर सकता वैसे भी यह बहुत कम देखने को मिलता है जिन्हें हिमालय के चप्पे चप्पे का ज्ञान है उन्हें ही इस पौधे के बारे में पता होता है

ज्यादातर विन्ध्याचल के पहाड़ो में घने वृक्षों के बीच यह पौधा प्राप्त होता है या नर्मदा के किनारे यह पौधा प्राप्त होता है या कभी कभी पहाड़ो पर भी यह प्राप्त हो जाता है इसे प्राप्त करना अत्यंत दुष्कर कार्य है वस्तुतः इसके
माध्यम से अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न किये जा सकते है जो मानव के लिए मुश्किल ही नहीं असंभव जैसे प्रतीत होते है इसमें कोई संशय नहीं है सच कहू तो प्रकृति का मानव जाति को अमरता का वरदान है इसके

द्वारा हजारो सालो तक जीवित रहा जा सकता है इसका रस ताम्र को पिघलाकर डालने पर तुरंत ताम्बा स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता है और भी बहुत सारे लाभ है जिन्हें लिखना संभव नहीं है क्योकि इससे अनंत प्रयोग

संपन्न किये जा सकते है यह एक प्रयोग का भी विषय है |

Dimensions 42 × 12 × 12 cm
Unit

Barrel, Bottle, Box, Carat, Carton, Cubic Feet, Cubic Meter, Dozen, Foot, Inch, Kilogram, Kilowatt, Liter, Megawatt, Meter, Pair, Piece, Roll, Watt